तलाकशुदा का विवाह- समाज मे हर व्यक्ति को बिना शादी के नही रहना चाहिए अगर तलाक़ हो गयी है तो फ़ौरन अच्छे साथी चुन कर सुखमय जीवन(खुसिवाली जिंदगी) बिताना चाहिए/तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को सम्मान देकर पुरुषों को उनसे विवाह करने के लिए प्रेरित(motivate) किया है।
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हज़रत मुहम्मद😊 ने ऐसी तलाकशुदा और विधवा महिलाओं से खुद विवाह करके अपने मानने वालों को दिखाया कि देखो मैं कर रहा हूँ , तुम भी करो , मैं सम्मान और हक दे रहा हूँ तुम भी दो, मुसलमानों के लिए विधवा और तलाकशुदा औरतों से विवाह करना हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की एक सुन्नत पूरी करना है जो बहुत पुण्य (सवाब)का काम है।
भारत में ही विधवाओं को पति की चिता(आग) में सती (पति के साथ जलाना)कर देने की व्यवस्था थी जो मुगल राजाओ ने बन्द की तो उसी भारत में जीवित रह गयी विधवाओं और विधुरो(Widoers) के लिए क्या व्यवस्था थी ? कुछु नाही।
पिछली जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 23 लाख अलग की गई-परित्यक्त औरतें हैं, जो कि तलाक़शुदा औरतों की संख्या के दोगुने से ज़्यादा है।
20 लाख ऐसी हिंदू महिलाएं हैं, जिन्हें अलग कर दिया गया है या छोड़ दिया गया है. मुस्लिमों के लिए यह संख्या 2.8 लाख, ईसाइयों के लिए 90 हजार, और दूसरे धर्मों के लिए 80 हजार है।
एक़तरफा तरीके से अलग कर दी गई हर औरत का जीवन दयनीय है, भले ही वो राजा भोज की पत्नी हो या गंगू तेली की. उन्हें अपने ससुराल और मायके दोनों जगहों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
ससुराल वाले उनके साथ इसलिए नहीं आते, क्योंकि उनके बेटे ने उसे छोड़ दिया है और मायके में उनकी अनदेखी इसलिए होती है क्योंकि परंपरागत तौर पर उन्हें पराया धन समझा जाता है, जिसकी ज़िम्मेदारी किसी और की है।
अल्लाह के ईशदूत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "3 चीज़ों में देर नहीं करनी चाहिए। जिनमे से एक चीज़ तलाक़ शुदा या बेवा का जल्द निकाह कर देना है। जबकि उनकी जोड़ का कोई मिल जाये।"
(सहीह हदीश मिश्कात 605)
लेकिम तलाकशुदा महिलाये ज़्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर बेहद कठिन परिस्थितियों में अपना जीवन गुज़ार रही हैं.साथ ही उनका दूसरों द्वारा उनके शोषण का ख़तरा भी बना रहता है।
वे अपने पति के साथ रहना चाहती हैं, बस उनके बुलाने भर का इंतज़ार कर रही हैं.
To be continued ...