13. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

सीरत - इमाम अबुल हसन अशअरी (रह.), नबी (ﷺ) को आखरी नबी मानना, खाना खाते वक्त टेक न लगाना, इस्तिगफार की बेशुमार बरकतें

13. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा 

13 Zil Hijjah | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

इस्लामी तारीख:

इमाम अबुल हसन अशअरी (रह.)

इमाम अबुल हसन अली अशअरी (रह.) मशहूर सहाबी हज़रत अबू मूसा अशअरी की औलाद में थे। आपके जमाने में इस्लाम का एक फ़िर्का जो मुअतजिला के नाम से जाना जाता है।

उस ने इल्मी हलके में काफी असर डाल रखा था और आम तौर पर यह समझा जाने लगा था के मुअतजिला बड़े जहीन, अक्लमंद और मुहक्किक होते हैं और उनकी राय और तहकीक अक्ल से जियादा करीब होती है। 

और लोग फ़ैशन के तौर पर इस नजरिये को इख्तियार करने लगे थे और एक बड़ा फ़ितना बन था।

अल्लाह तआला ने इस अज़ीम काम के लिए इमाम अबुल हसन अली अशअरी (रह.) को चुना, वह उन के बातिल अकीदे की तरदीद और उनकी दावत देने को तकरूंब इलल्लाह का जरिया समझते थे। 

खुद मुअतजिला की मजलिसों में जाते और उनको समझाने की कोशिश करते। लोगों ने उनसे कहा के आप अहले बिदअत से क्यों मिलते जुलते हैं? 

उन्होंने जवाब में फ़र्माया : क्या करूं, अगर मैं उनके पास न गया तो हक कैसे जाहिर होगा और उन को कैसे मालूम होगा के अहले सुन्नत का भी कोई मददगार और दलाइल से उनके मजहब को साबित करने वाला है।

वह मुअतजिला की मुखालफ़त और तरदीद में लगे रहे यहाँ तक के फ़िर्क-ए-मुअतज़िला का ज़ोर कमजोर पड़ गया। आप की वफ़ात सन ३२४ हिजरी में बगदाद में हई।

[ इस्लामी तारीख ]

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2. अल्लाह की कुदरत

बचाव की सलाहियत

अल्लाह तआला ने हर एक जानवर को अपनी हिफ़ाजत व बचाव की सलाहियत से नवाज़ा है चुनांचे बैल, भैंस, बकरियों को सींग अता कर दिए।

और जंगली जानवरों में से हिरन, बारा सिंघा और गेंडे को ऐसे सींग लगाए के अगर कोई खूंखार दरिदा उन पर हमला करे तो आसानी से यह अपनी हिफ़ाजत कर लेते हैं।

इस तरह तमाम जानवरों को बचाव का सामान और हिफ़ाज़त का तरीका सिखा देना यह अल्लाह की कुदरत की बड़ी निशानी है।

[ अल्लाह की कुदरत ]

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3. एक फर्ज के बारे में

हजरत मुहम्मद (ﷺ) को आखरी नबी मानना

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“( हज़रत मुहम्मद ﷺ ) अल्लाह के रसूल और खातमुन नबिय्यीन हैं।”

[ सूरह अहज़ाब: ४० ]

वजाहत : रसूलुल्लाह (ﷺ) अल्लाह के आखरी नबी और रसूल हैं :
लिहाजा आपको आखरी नबी और रसूल मानना और अब कयामत तक
किसी दूसरे (नए) नबी के न आने का यकीन रखना फ़र्ज़ है।

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4. एक सुन्नत के बारे में

खाना खाते वक्त टेक न लगाना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“मैं टेक लगाकर नहीं खाता हूँ।”

फायदा: बिला उज्र टेक लगाकर खाना सुन्नत के खिलाफ़ है।

[ बुखारी:५३९८, अन अबी जुहैफा (र.अ) ]

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5. एक अहेम अमल की फजीलत

इस्तिगफार की बेशुमार बरकतें

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“जो शख्स पाबंदी के साथ इस्तिगफ़ार करेगा, अल्लाह तआला हर तंगी में उस के लिए आसानी पैदा करेगा,
उसे हर गम से नजात दिलाएगा और उसे ऐसी जगह से रिज्क अता करेगा, जहां से उस को वहम व गुमान भी नहीं होगा।”

[ अबू दाऊद : १५१८, इब्ने अब्बास (र.अ) ]

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6. एक गुनाह के बारे में

मियाँ बीवी अपना राज़ बयान न करें

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“कयामत के रोज अल्लाह की नज़र में लोगों में सब से बदतरीन वह शख्स होगा,
जो अपनी बीवी के पास जाए और उसकी बीवी उसके पास आए;
फिर उनमें से एक अपने साथी का राज किसी दूसरे को बताए।”

[ मुस्लिम: ३५४२, अबी सईद खुदरी (र.अ) ]

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7. दुनिया के बारे में

माल जमा करने का नुक्सान

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“तुम माल व दौलत जमा न करो, जिस की वजह से
तुम दुनिया की तरफ माइल हो जाओगे।”

[ तिर्मिज़ी: २३२८, इब्ने मसऊद (र.अ) ]

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8. आख़िरत के बारे में

परहेज़गारों की नेअमतें

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“(कयामत के दिन) परहेज़गार लोग (जन्नत) के सायों में और चश्मों में और पसंदीदा मेवों में होंगे
(उन से कहा जाएगा) अपने (नेक) आमाल के बदले में खूब मजे से खाओ पियो,
हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं।
उस दिन झुटलाने वालों के लिए बड़ी खराबी होगी।”

[ सूरह मुरसलात: ४१ ता ४५ ]

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9. तिब्बे नबवी से इलाज

मिस्वाक के फ़वाइद

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“मिस्वाक मुंह की सफाई और ख़ुदा की रजामंदी का जरिया है।”

[ निसाई : ५, आयशा (र.अ) ]

खुलासा : अल्लामा इब्ने कय्यिम मिस्वाक के फ़्वाइद में लिखते हैं :
यह दांतों में चमक और मसुडो में मजबूती पैदा करती है,
इस से मुंह की बदबू खत्म हो जाती है और दिमाग पाक व साफ़ हो जाता है,
यह बलगम को काटती है, निगाह को तेज करती है और आवाज़ को साफ़ करती है।

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10. क़ुरान की नसीहत

सुबह शाम अल्लाह का ज़िक्र किया करो

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“ऐ ईमान वालो ! अल्लाह तआला का खूब जिक्र किया करो
और सुबह व शाम उसकी पाकी बयान किया करो।”

[ सूर अहज़ाब : ४१ ता ४२ ]

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