16. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

सीरत - सुलतान नूरुद्दीन जंगी (रह.), मज़दूर को पूरी मजदूरी देना, नफा बख्श इल्म के लिए दुआ, यतीम की पर्वरिश करना, एक गुनाह: कंजूसी करना, दुनिया की चीजें
16 Zil Hijjah | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

16. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा 

16 Zil Hijjah | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

इस्लामी तारीख

सुलतान नूरुद्दीन जंगी (रह.)

सुलतान नूरुद्दीन जंगी १७ शव्वाल सन ५११ हिजरी में पैदा हुए, बड़े ही नेक और इबादत गुज़ार थे। अपने वालिद इमादुद्दीन जंगी के बाद मुल्के शाम के बादशाह बने। अपनी हुकूमत में उन्होंने शाम के तमाम बड़े बड़े शहरों में मदरसे बनवाए। उलमा और अहले दीन की बहुत ताज़ीम करते थे। सदकात व खैरात भी खूब करते थे। बड़े अमानतदार और कनाअत शिआर थे।

एक मर्तबा उन की अहलिया ने तंगी की शिकायत की, तो उन्होंने अपनी तीन दुकानें जिन की सालाना आमदनी बीस दीनार थी, उन को खर्च के लिए दे दीं। जब बीवी ने उस को कम समझा, तो उन्होंने कहा के इस के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है और जो कुछ तुम मेरे पास देखती हो, वह सब मुसलमानों का है.मैं तो महज खजान्ची हूं, मैं तुम्हारी खातिर इस अमानत में खयानत करके जहन्नम में जाना नहीं चाहता।

उन की सबसे बड़ी आरजू “बैतुल मुकद्दीस” को फ़तह करना था, मगर उन की तमन्ना पूरी नहीं हो सकी और सन ५६९ हिजरी में उन का इन्तेकाल हो गया लेकिन बैतुल मकदिस को उन के सिपह सालार सलाहुद्दीन अय्यूबी (रह.) ने सन ५८३ हिजरी में फतह कर लिया। इब्ने असीर लिखते हैं के खुलफ़ाए राशिदीन और उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ के बाद नूरुद्दीन से बेहतर सीरत और उन से ज़्यादा आदिल इन्सान मेरी नज़र से नहीं गुज़रा।

[ इस्लामी तारीख ]

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हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा:

गूंगे का अच्छा होना

रसूलुल्लाह (ﷺ) हज्जतुल विदाअ में जब जमर-ए-अकबा की रमी कर के वापस होने लगे, 

तो एक औरत अपने एक छोटे बच्चे को लेकर हाज़िरे खिदमत हुई और अर्ज़ किया: या रसूलल्लाह (ﷺ) ! मेरे इस बच्चे को ऐसी बीमारी लग गई है के बात भी नहीं कर सकता, 

तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने एक बर्तन में पानी मंगवाया और दोनों हाथों को धोया और कुल्ली की और फिर वह बरतन उस औरत के हवाले करने के बाद फ़र्माया: “इसमें से बच्चे को पिलाती रहना और थोड़ा थोड़ा इसपर छिड़कती रहना और अल्लाह तआला से शिफा की दुआ करती रहना।”

हज़रत उम्मे जूंदूब (र.अ) फ़र्माती हैं के एक साल बाद मेरी उस औरत से मुलाकात हुई, तो मैंने पूछा : बच्चे का क्या हाल है ? तो उस ने कहा : (अल्हम्दुलिल्लाह) ठीक हो गया और इतनी जियादा समझ आ गई के जितनी बड़े लोगों में भी नहीं होती।

[ इब्ने माजा : ३५३२ ]

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एक फर्ज के बारे में:

मज़दूर को पूरी मजदूरी देना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“मैं कयामत के दिन तीन लोगों का मुकाबिल बन कर उन से झगड़ूंगा, (उन्हीं में से एक) वह शख्स है, जिसने किसी को मज़दूरी पर रखा और उस से पूरा पूरा काम लिया, मगर उस को पूरी मज़दूरी नहीं दी।”

[ इब्ने माजा: २४४२ ]

खुलासा: मजदूर को मुकम्मल मजदूरी देना वाजिब है।

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एक सुन्नत के बारे में:

नफा बख्श इल्म के लिए दुआ

हज़रत अबू हुरैरह (र.अ) फर्माते हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) यह दुआ फरमाते थेः

”ऐ अल्लाह ! जो इल्म तूने मुझे दिया है इस से नफ़ा अता फर्मा और मुझे नफ़ा बख्श इल्म अता फ़र्मा और मेरे इल्म में ज़ियादती अता फ़र्मा।”

[ तिर्मिज़ी : ३५९९ ]

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एक अहेम अमल की फजीलत:

यतीम की पर्वरिश करना

रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“मुसलमानों में बेहतरीन घर वह है, जिसमें कोई यतीम हो और उससे अच्छा सुलूक किया जाए और मुसलमानों में बदतरीन घर वह है जिस में कोई यतीम हो और उस के साथ बुरा सुलूक किया जाए।”

[ इब्ने माजा: ३६७९ ]

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एक गुनाह के बारे में:

कंजूसी करना

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“जो लोग अल्लाह तआला के अता कर्दा माल व दौलत को खर्च करने में बुख्ल (कंजूसी) करते हैं, वह बिलकुल इस गुमान में न रहें के (उन का यह बुख्ल करना) उनके लिए बेहतर है, बल्के वह उन के लिए बहुत बुरा है, कयामत के दिन उन के जमा करदा माल व दौलत को ताक बनाकर गले में पहना दिया जाएगा और आसमान व ज़मीन का मालिक अल्लाह तआला ही है और अल्लाह तआला तुम्हारे आमाल से बाखबर (खबरदार) है।”

[ सूरह आले इमरान : १८० ]

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दुनिया के बारे में:

दुनिया की चीजें चंद रोज़ा

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“जो कुछ भी तुम को दिया गया है, वह सिर्फ चंद रोज़ा जिंदगी के लिए है और वह उस की रौनक है और जो कुछ अल्लाह तआला के पास है, वह उससे कहीं बेहतर और बाकी रहने वाला है। क्या तुम लोग इतनी बात भी नहीं समझते? “

[ सूरह कसस: ६० ]

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तिब्बे नबवी से इलाज

दिल की कमजोरी का इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“तुम लोग संतरे का इस्तेमाल किया करो,
क्योंकि यह दिल को मजबूत बनाता है।”

[ कंजुल उम्माल : २८२५३ ]

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नबी (ﷺ) की नसीहत:

तोहफा देने वाले के साथ सुलूक

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“जिस शख्स को हदिया (तोहफा) दिया जाए, अगर उस के पास भी देने के लिए हो, तो उसको बदले में हदिया देने वाले को दे देना चाहिए और अगर कुछ न हो तो (बतौर शुक्रिया) देने वाले की तारीफ़ करनी चाहिए। क्यों कि जिस ने तारीफ़ की उसने शुक्रिया अदा कर दिया और जिस ने छुपाया उसने नाशुक्री की।”

[ अबू दाऊद : ४८१३ ]

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