12. रमजान | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
12. Ramzan | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हुजूर (ﷺ) का एक तारीखी फैसला
“रसूलुल्लाह (ﷺ) की नुबुव्वत से चंद साल कब्ल खान-ए-काबा को दोबारा तामीर करने की ज़रुरत पेश आई। तमाम कबीले के लोगों ने मिल कर खान-ए-काबा की तामीर की, लेकिन जब हजरे अस्वद को रखने का वक्त आया, तो सख्त इखिलाफ पैदा हो गया, हर कबीला चाहता था के उसको यह शर्फ हासिल हो, लिहाज़ा हर तरफ से तलवारें खिंच गई और कत्ल व खून की नौबत आ गई। जब मामला इस तरह न सुलझा, तो एक बूढ़े शख्स ने यह राय दी के कल सुबह जो शख्स सब से पहले हरम में आएगा वहीं इस का फैसला करेगा ।
सब ने यह रायपसंद की, दूसरे दिन सबसे पहले हुजूर (ﷺ) हरम में दाखिल हुए, आप को देखते ही सब बोल उठे–
“यह अमीन हैं, हम इन के फैसले पर राज़ी हैं।”
आप ने एक चादर मंगवाई और हजरे अस्वद को उस पर रखा और हर कबीले के सरदार से चादर के कोने पकड़वा कर उस को काबे तक ले गए और अपने हाथ से हजरे अस्वद को उस की जगह रख दिया। इस तरह आप के ज़रिये एक बड़े फितने का खात्मा हो गया।”
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
पहाड़ का हिलना
“रसूलुल्लाह (ﷺ) एक मर्तबा उहुद पहाड़ पर चढ़े, आप के साथ हज़रत अबू बक्र (र.अ) , हज़रत उमर (र.अ) और हज़रत उस्मान (र.अ) भी थे, वह पहाड़ हिलने लगा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पहाड़ पर अपना पाँव मार कर फर्माया:
उहुद ठहर जा तुझ पर एक नबी, एक सिद्दीक और दो शहीद हैं। (तो वह ठहर गया)”
3. एक फर्ज के बारे में
अज़ान सुन कर नमाज़ के लिए न जाना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“सरासर जुल्म, कुफ्र और निफाक है उस शख्स का जो अल्लाह के मुनादी (यानी मोअज्जिन) की आवाज़ सुने और नमाज़ को न जाए ।”
4. एक सुन्नत के बारे में
गुनाहों से माफी की दुआ
“अपने गुनाहों से माफी मांगने और अल्लाह तआला से रहम व करम तलब करने के लिए यह दुआ करनी चाहिए”–
رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ
तर्जमा: ऐ हमारे रब ! हम ने अपनी जानों पर बड़ा जुल्म किया (अब) अगर आप हमारी मगफिरत नहीं फर्माएंगे और रहम नहीं करेंगे तो हमारा बड़ा नुकसान हो जाएगा।
वजाहत: यह हज़रत आदम व हव्वा (अ.स) की दुआ है, जो उन्होंने अपनी माफी के लिए अल्लाह तआला से की थी।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
गलती माफ करने का बदला
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“कयामत के दिन एक पुकारने वाला पुकारेगा, के कहां हैं वह लोग जो लोगों की गलतियाँ माफ कर दिया करते थे, वह अपने परवरदिगार के हुज़ूर में आएँ और अपना इन्आम ले जाएँ, क्योंकि हर वह मुसलमान जिसकी (लोगों को माफ करने की) आदत थी, वह जन्नत में जाने का हकदार है।”
6. एक गुनाह के बारे में
हज़रत ईसा (अ.स) को ख़ुदा मानना
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“यकीनन वह लोग काफिर हो चुके जिन्होंने यूं कहा कि मसीह इब्ने मरयम ही खुदा है, हालांकि ख़ुद हज़रत ईसा (अ.स) ने बनी इसराईल से कहा था के तुम उस अल्लाह की इबादत करो जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है,यकीन जानो, जो शख्स अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, तो अल्लाह तआला उस पर जन्नत हराम कर देगा और उसका ठिकाना जहन्नम है और ऐसे ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया चाहने वालों का अंजाम
क़ुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है
“और जो कोई दुनिया ही चाहता है, तो हम उस को दुनिया में जितना चाहते हैं, जल्द देते हैं फिर हम उस के लिए दोज़ख मुकर्रर कर देते हैं, जिस में (कयामत के दिन) जिल्लत व रुस्वाई के साथ ढकेल दिए जाएंगे।
8. आख़िरत के बारे में
कयामत के दिन के सवालात
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“इन्सान के कदम कयामत के दिन अल्लाह के सामने से उस वक्त तक नहीं हटेंगे, जब तक उस से पाँच चीज़ों के बारे में सवाल न कर लिया जाए –
(१) उसकी उम्र के बारे में, के उसको कहां खत्म किया,
(२) उसकी जवानी के बारे में, के उसको कहां खर्च किया,
(३) माल कहां से कमाया,
(४) कहां खर्च किया, और
(५) इल्म के मुताबिक क्या-क्या अमल किया।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
अनार से इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“अनार को उस के अंदुरुनी छिलके समेत खाओ क्योंकि यह मेअदे को साफ करता है।”
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
मकाफाते-अमल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“दूसरों की औरतों से दूर रहो तुम्हारी औरतें भी पाक दामन रहेंगी, अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करो, तुम्हारी औलाद भी तुमसे हुस्ने सुलूक करेगी।”
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