पैग़म्बर ﷺ का फरमान है : "महिलाएं, पुरूषों के समान हैं।" (अबू दाऊद हदीस नं.:236)
इस्लाम ने माँ को जो सम्मान दिया हे तो पत्नी को भी बहुत सम्मान दिया हे इसी तरह इस्लाम में बेटियो का भी सम्मान और महत्व हे।
अल्लाह ने क़ुरान में कहा हे की-, "अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वो जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। या उन्हें लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है निस्संतान रखता है। निश्चय ही वो सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है।" (शूरा 42:- 49- 50)
उपरोक्त आयत में हमने नोटिस किया कि इन आयतों में बेटियों का ज़िक्र बेटों से पहले आया है और धार्मिक विद्वानों ने इस पर ये टिप्पणी की है:
"ये बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए है और उनके प्रति अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए है क्योंकि कई अभिभावक बेटी के जन्म को बोझ महसूस करते हैं। इस्लाम से पहले के दौर में लोगों का ये आम दृष्टिकोण था कि वो बेटी के जन्म से इतनी नफरत करते थे कि उन्हें ज़िंदा दफन कर देते थे इसलिए इस आयत में
अल्लाह लोगों से ये कह रहा है किः
"और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ सूचना मिलती है तो उसके चहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है। जो शुभ सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई जो उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखो, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते है! " (सूरेह नहल 16:- 58-59)
रसूलअल्लाह (सलल्लाहू अलैहि वसल्लम) फरमाते है:
जिस ने तीन बेटियों को पाला उन्हें अदब सिखाया उन की शादी की और उन के साथ एहसान का मामला करता रहा तो उस के लिये जन्नत है।
सुनन अबु दावूद 5147
लड़कियों के लिए इतना सम्मान ही पर्याप्त है कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के भी बेटियाँ थीं और हमारे प्यारे पैगंबर सल्ल्लाहू अलैहि वसल्लम के अधिकांश बच्चे बेटियां ही थीं, जिनके नाम ज़ैनब, रोक़ैय्या, उम्मे कुलसूम और फातिमा था।
बेटियो को इस्लाम विरासत मेसे भी हक़ देता हे जैसा की अल्लाह तआला के इस फरमान के अनुरूप है :
“अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है कि एक लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के बराबर है, यदि केवल लड़कियाँ हों और दो से अधिक हों तो उन्हें विरासत की संपत्ति से दो तिहाई मिलेगा, और अगर एक ही लड़की हो तो उस के लिए आधा है।” (सूरतुन्निसा : 11)
उपरोक्त आयत में हमने नोटिस किया कि इन आयतों में बेटियों का ज़िक्र बेटों से पहले आया है और धार्मिक विद्वानों ने इस पर ये टिप्पणी की है:
"ये बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए है और उनके प्रति अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए है क्योंकि कई अभिभावक बेटी के जन्म को बोझ महसूस करते हैं। इस्लाम से पहले के दौर में लोगों का ये आम दृष्टिकोण था कि वो बेटी के जन्म से इतनी नफरत करते थे कि उन्हें ज़िंदा दफन कर देते थे इसलिए इस आयत में
अल्लाह लोगों से ये कह रहा है किः
"और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ सूचना मिलती है तो उसके चहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है। जो शुभ सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई जो उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखो, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते है! " (सूरेह नहल 16:- 58-59)
रसूलअल्लाह (सलल्लाहू अलैहि वसल्लम) फरमाते है:
जिस ने तीन बेटियों को पाला उन्हें अदब सिखाया उन की शादी की और उन के साथ एहसान का मामला करता रहा तो उस के लिये जन्नत है।
सुनन अबु दावूद 5147
लड़कियों के लिए इतना सम्मान ही पर्याप्त है कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के भी बेटियाँ थीं और हमारे प्यारे पैगंबर सल्ल्लाहू अलैहि वसल्लम के अधिकांश बच्चे बेटियां ही थीं, जिनके नाम ज़ैनब, रोक़ैय्या, उम्मे कुलसूम और फातिमा था।
बेटियो को इस्लाम विरासत मेसे भी हक़ देता हे जैसा की अल्लाह तआला के इस फरमान के अनुरूप है :
“अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है कि एक लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के बराबर है, यदि केवल लड़कियाँ हों और दो से अधिक हों तो उन्हें विरासत की संपत्ति से दो तिहाई मिलेगा, और अगर एक ही लड़की हो तो उस के लिए आधा है।” (सूरतुन्निसा : 11)