तलाक़ (तलाक़े खुला) लेने का अधिकार -
इस्लाम के पहले दुखी और जुल्म से भरी जिंदगी को समाप्त करके पति पत्नी के अलग-अलग सुखी जीवन जीने का कोई सुखदाई नियम किसी समाज और धर्म मे नही था ।जहाँ मर्द को बुरी औरत से निजात के लिए तलाक़ का अधिकार दिया है। वही औरत को भी “खुला” का अधिकार दिया गया है। जिसका प्रयोग कर वो ग़लत मर्द से छुटकारा पा सकती है और सुखदाई जीवन-जी सकती है
हज़रत इब्ने अब्बास ( रजि.) ने बयान किया कि साबित बिन कैस बिन शमास (रजि.) की बीवी नबी करीम ﷺ के पास आई और अर्ज़ किया "या रसूलल्लाह ﷺ ! साबित (रजि.) के दीन और उनके अख़्लाक़ से मुझे कोई शिकायत नहीं लेकिन मुझे ख़तरा है (कि मैं साबित रजि. की नाशुक्री में न फंस जाऊँ) हज़रत मुहम्मद ﷺ ने इस पर उनसे पूछा क्या तुम उनका बाग़ (जो उन्होंने महर में दिया था) वापस कर सकती हो ? उन्होंने अर्ज़ किया जी हाँ। चुनाँचे उन्होंने वो बाग़ वापस कर दिया और हज़रत मुहम्मद ﷺ के हुक्म से साबित (रजि.) ने उन्हें अपने से अलग कर दिया। (सहीह बुखारी Volume 7, Book 63, Number 199)
अन्य धर्मो मे तो जालिम पति या पत्नी से निजात कैसे मिले, कोई नियम नही था।
हाल ही मे यूरोप एशिया और अपने भारत मे हिंदू लोगो ने ,इस्लाम के तरह तलाक़ लेने का इस्लाम का तरीका शुरू किया, जिस मे बहुत आसानी हे । यूरोप मे अगर तलाक़ हो जाता है और बीबी चाहे जितनी भी जालिम हो , उसको ज़िंदगी भर पैसा देना होगा या Settlement(इंतजाम) के तौर पर एक एक भारी रकम बिना किसी जुर्म किए चुकाना पड़ेगा/ भारत मे भी हिंदू तलाक़ के सिस्टम मे भारी पेचीदगी है। वर्षो वर्षो लग जाते है तलाक़ लेने मे और आज दिल्ली समेत कई शहरो मे ग़लत औरतो द्वारा कई शादी करके पैसे हड़पने की न्यूज़ सामने आई हे, हिंदू पति परेशान है जालिम औरतो से छुटकारा पाने के लिए, बहुत कम ही खुशकिस्मत है जिनको दस पंद्रह साल मे तलाक़ मिल जाए।ज़रा सोचिएगा कि एक दंपत्ति(घरवाला या घर चलाने वाला) जिनकी जिंदगी तनाव और दुःख से भरी है तो उसके पास किसी अन्य धर्म के अनुसार अलग-अलग सुखमय जीवन (खुशि भरी जिंदगी) जीने का क्या विकल्प(मोका) है ?
कोई नहीं, ना सनातन ना ईसाई ना सिख यह व्यवस्था केवल इस्लाम में है
अदालतों में क्या होता है ?
पति न्यायाधीश(जज) और वकीलों तथा रिश्तेदारों की उपस्थित में अपनी पत्नी के चाल चरित्र (Character) से लेकर स्वभाव(Nature) तक का गलत सही आरोप लगाता है , उसे कलमुही और जाहिल साबित करता है , गैर मर्द के साथ उसके हमबिस्तर होने की झूठी सच्ची गवाही दिलाता है।
यही पत्नी भी करती है, वह अपने पति को नामर्द और शारीरिक संतुष्टि ना देने वाला सिद्ध(साबित) करती है , अलग अलग महिलाओं से उसके नाजायज़ संबंध(रिलेशन) सिद्ध करती है, मारपीट करने वाला सिद्ध करती है। फिर जज भी दोनों को अलग होने का फैसला सुना देता है ।
दोनों अलग हो जाते हैं पर उनको मिलता क्या है ?
उन दोनों पर एक दूसरे के लगाए झूठे सच्चे आरोप(इल्जाम) उनके अगले वैवाहिक जीवन (शादीशुदा जिंदगी)की नई शादी करने की प्रोसेस को समाप्त कर देते हैं।
अदालत में एक दूसरे को नंगा कर के पाए तलाक उनके लिए जीवन भर के लिए कलंक बन जाते हैं और पुनर्विवाह(फिर से शादी) के हर शुरुआती बातचीत के रास्ते बन्द कर देते हैं।
इसीलिये पत्नी को जलाकर मार देना या लटका देना पतियों को एक बेहतर विकल्प लगता है और ऐसी घटनाएँ बहुतायत में होती हैं। लेकिन यह गलत है।
सोचिए कि कौन सी स्थिति बेहतर है ?
एक कमरे में पति पत्नी का चुपचाप इस्लामिक पद्धति(प्रोसेस ) से अलग हो जाना या नंगानाच करके अलग होना।
*आप चिढ़ में इस्लामिक व्यवस्थाओं ( कायदे कानून) को लाख बुरा कहिए* परन्तु एक ना एक दिन आपको इसे अपनाना ही पड़ेगा , उच्चतम न्यायालय (High Court)भी हिन्दुओं को तलाक की अनुमति (Permission)दे चुकी है।
To be continued ...