इस्लाम में औरतो के हक, सम्मान और इज्जत Part-6

इस्लाम में औरतो के हक, सम्मान और इज्जत Part-6


समान पुरस्कार और बराबर जवाबदेही –

ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है, उसमें से कुछ ले उड़ो। परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठे तो दूसरी बात है। और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे (क़ुरान सूरेह निसा; आयत 19)

इस्लाम में आदमी और औरत एक ही अल्लाह को मानते हैं, उसी की इबादत करते हैं, एक ही किताब पर ईमान लाते हैं | अल्लाह सभी इंसानों को एक जैसी कसौटी पर तौलता है वह भेदभाव(Differentiation) नहीं करता।😊
अगर हम दुसरे मज़हबों से इस्लाम की तुलना करेंगे तब हम देखेंगे की इस्लाम दोनों लिंगों(Genders) के बीच भी न्याय(insaf) करता है | उदाहरण के लिए इस्लाम इस बात को ख़ारिज करता है कि माँ हव्वा हराम पेड़ से फल तोड़ कर खाने के लिए ज्यादा ज़िम्मेदार हैं बजाय हज़रत आदम के |

इस्लाम के मुताबिक माँ हव्वा और हज़रत आदम दोनों ने गुनाह किया | जिसके लिए दोनों को सजा मिली | जब दोनों को अपने किये पर पछतावा हुआ और उन्होंने माफ़ी मांगी, तब दोनों को माफ़ कर दिया गया।

"और उसकी कामना न करो जिसमें अल्लाह ने तुमसे किसी को किसी से उच्च रखा है। पुरुषों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है। अल्लाह से उसका उदार दान(फ़ज़्ल) चाहो। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।" (क़ुरान सूरेह निसा 4:32)

इस सूक्त से समज आता हे की औरत की कमाई पर भी आदमी का हक नही हे यानि अगर औरत अपने हिस्से में कुछ देदे वो औरत की भलाई हे लेकिन आदमी उसकी कमाई का हकदार नही हे ।
"और यह भी उस की निशानियों में से है कि उस ने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उस के पास शान्ति प्राप्त करो। और उस ने तुम्हारे बीच प्रेंम और दयालुता पैदा की। और निश्चय ही इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करते हैं (सूरेह रूम आयत 21)
To be continued ...

एक टिप्पणी भेजें

© Hindi | Ummat-e-Nabi.com. All rights reserved. Distributed by ASThemesWorld