खामिद (पति Husband) चुनने का अधिकार -
पति चुनने के मामले में इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव(शादी की बत) को स्वेच्छा(मर्जी) से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के खिलाफ नहीं किया जा सकता।
पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने कहा, "बेवा औरत का निकाह तब तक ना किया जाए जब तक उस से इजाजत ले लिया जाय और एक कुंवारी की उसकी अनुमति के बिना शादी नहीं करना चाहिए।"
लोगों ने पूछा, ऐ अल्लाह के रसूल! हम उसकी अनुमति कैसे जान सकते हैं? उन्होंने कहा, उसकी चुप्पी (उसकी अनुमति का संकेत देती है)।
(सहिह बुखारी हदीस 5136)
बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदंड (criteria) इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वहीं है जो अपनी पत्नी के लिए अच्छा है। यानी इंसान के अच्छे होने का मापदंड(criteria) उसकी हमसफर है।
इस्लाम ने महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए हैं -
जिनमें प्रमुख हैं, जन्म से लेकर जवानी तक अच्छी परवरिश का हक़, शिक्षा और प्रशिक्षण का अधिकार, शादी ब्याह अपनी व्यक्तिगत सहमति से करने का अधिकार और पति के साथ साझेदारी में या निजी व्यवसाय करने का अधिकार,नौकरी करने का आधिकार, बच्चे जब तक जवान नहीं हो जाते (विशेषकर लड़कियां) और किसी वजह से पति और पुत्र (बेटा)की सम्पत्ति में वारिस होने का अधिकार।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया - "तुम में से सर्वश्रेष्ठ(बेहतरीन) इंसान वह है जो अपनी बीवी के लिए सबसे अच्छा है।"(तिरमिजी, अहमद)
इसलिए वो खेती, व्यापार, उद्योग या नौकरी करके आमदनी कर सकती हैं और इस तरह होने वाली आय पर सिर्फ और सिर्फ उस औरत का ही अधिकार होगा। औरत को भी हक़ है। (पति से अलग होना का अधिकार)😊👍🏻
इस्लाम मे मर्द औरतो को दोनों को बराबर हक़ दिया हे लेकिन शरीयत के दायरे में ताकि दुनिया और आख़िरत दोनों जीती जा सके और इसमें मेरे अल्लाह की भी रज़ा हे ।
To be continued ...