मुस्लिम जगत में वृद्धाश्रम क्यों नहीं है?

अगर आप अध्ययन करोगे तो पता चलेगा के मुस्लिम जगत में वृद्धाश्रम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। क्यूंकि मानव जीवन की इस कठिन उम्र में वृद्ध माता-पिता की से

मुस्लिम जगत में वृद्धाश्रम क्यों नहीं है?


🤔 क्या आपको पता है? 
मुस्लिम जगत में वृद्धाश्रम का कोई अस्तित्व ही नहीं

अगर आप अध्ययन करोगे तो पता चलेगा के मुस्लिम जगत में वृद्धाश्रम का कोई अस्तित्व ही नहीं है। क्यूंकि मानव जीवन की इस कठिन उम्र में वृद्ध माता-पिता की सेवा में होने वाले कष्ट और असुविधा को इस्लाम में सम्मान और सौभाग्य के रूप में देखा जाता है और आध्यात्मिक विकास के लिए एक शुभ अवसर समझकर इसका स्वागत किया जाता है।

इस्लाम में माता पिता की सेवा का महत्व

इस्लाम में माता पिता के अधिकार के महत्व का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि कुरआन करीम ने जगह जगह माँ बाप के अधिकार अल्लाह के अधिकार के साथ बयान किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया:

  وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ۚ إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِندَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا ﴿٢٣﴾وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُل رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا ﴿٢٤  


तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें ‘उँह’ तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो (23) और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, “मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।” (24)


इस आयत में बुढ़ापे का जो विशेष उल्लेख किया गया है, इसकी वजह यह है कि इस उम्र में मां बाप विभिन्न विकारों के शिकार हो जाते हैं, उनकी बुद्धि और समझ जवाब देने लगती है, 

फिर उन के स्वभाव में भी तिखापन आ जाती है, मामूली मामूली बात पर बक बक करने लगते हैं, एक तरफ तो वह सेवा के मोहताज होते हैं तो दूसरी तरफ उनकी शैली में सख्ती पैदा हो जाती है, 

ऐसे समय में एक व्यक्ति को उसका बचपना याद दिलाया गया कि कभी तुम भी सेवा के मोहताज थे, तेरे मां बाप ने तेरी गंदगी को साफ किया था, तेरे नाज़ नख़रे सहन किए थे, अपने खून पसीने की कमाई को तुझ पर लुटाया था, अब जब कि वह सेवा के मोहताज हैं, तो सज्जनता की मांग है कि उनके पूर्व अनुग्रह का बदला चुकायें.

ज़रा कुरआन की शैली पर विचार करें “فلاتقل لهما أف” यानी किसी बात पर उन्हें झड़कना तो दूर की बात है उन्हें “हूँ” भी मत करो, बल्कि अति विनम्रता के साथ बात करो।

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क़ुरआन में माता-पिता और सन्तान से संबंधित शिक्षाएं

लिहाजा हमें चाहिए कि हम अपने माता पिता की सेवा गर्व से करें कि इससे हमारा लोक और प्रलोक दोनों सुधरने वाला है। अल्लाह हमें इसकी तौफीक़ दे। आमीन

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