8. ज़िल हज | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
8. Zil-Hajj | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
इमाम इब्ने माजा (रहमतुल्लाहि अलैहि)
आप का नाम मुहम्मद और कुनिय्यत अबू अब्दुल्लाह, वालिद का नाम यजीद बिन अब्दुल्लाह बिन माजा कज़्वीनी है। जद्दे अमजद की तरफ़ निस्बत करते हुए इब्ने माजा कहा जाता है। आप २०९ हिजरी में इराक़ के मशहूर शहर क़ज़वीन में पैदा हुए। इब्ने माजा ने इल्मे हदीस व तफ़सीर और तारीख में महारत हासिल करने के लिये मुख्तलिफ़ ममालिक का सफ़र किया और माहिरीन उलमा और असातिजा से इल्म हासिल कर के फ़न के इमाम बन गए।
उन्होंने हदीस व तफ़सीर और तारीख़ में बहुत सी मुफीद किताबें लिखी हैं, मगर उन में सब से ज़ियादा मशहूर किताब “सुनन इब्ने माजा” है। जो “सिहाहे सित्ता” यानी हदीस की छ मशहर किताबों में से एक है। जिस में चार हज़ार हदीसों को बयान किया गया है। उन की यह किताब हुस्ने तरतीब और बिला तकरार अहादीस और दूसरी कुतुबे हदीस के मुक़ाबले में तौहीद व अक्राइद को बयान करने में लाजवाब व बेमिसाल है। जब उन्होंने इस किताब को तालीफ़ कर के इमाम अबू ज़रआराजी के सामने पेश किया तो उन्हों ने इस को देख कर फ़र्माया: अगर यह किताब लोगों के हाथों में आ गई तो मुझे डर है के कहीं दूसरी अहादीस की किताबें न छोड बैठे।
आखिर दीनी ख़िदमत अन्जाम देते हुए २२ रमजानुल मुबारक बरोजे पीर सन २७३ हिजरी में वफ़ात पाई और मंगल के दिन दफ़न किये गए।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
थोड़े से छूहारों में बरकत
सूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत उमर को हुकम दिया के कबील-ए-मुजैना के चार सौ सवारों को सफर में खाने के लिए कुछ सामान दे दो,
हज़रत उमर (र.अ) ने अर्ज किया: या रसुलल्लाह ! मेरे पास कोई चीज ऐसी नहीं जो मैं उनको दे सकू।
आप (ﷺ) ने फर्माया : “जाओ तो सही” हज़रत उमर (र.अ) उन लोगों को अपने घर ले गए घर पर थोड़े से छुहारे रखे हुए थे, वह उन लोगों के दर्मियान तकसीम कर दिया।
हज़रत नुमान बिन मुकरिन (र.अ) फर्माते हैं (तक़सीम के बाद भी) छुहारे जितने थे उतने ही बाकी रहे (उनमें कुछ कमी नहीं हुई)।
3. एक फर्ज के बारे में
तक्बीराते तशरीक
नवीं जिलहिज्जा की फज़र की नमाज़ से तेरहवीं जिलहिज्जा की अम्र तक हर फ़र्ज नमाज के बाद हर मुसलमान मर्द व औरत पर तक्वीरे तशरीक कहना ज़रूरी है।
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
ला इलाहा इल्लल लाहु
वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
वलिल लाहिल हम्द
4. एक सुन्नत के बारे में
खैर व भलाई की दुआ
रसूलुल्लाह (ﷺ) यह दुआ फ़र्माते थे:
तर्जमा: ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से, उन तमाम भलाइयों का सवाल करता हूं, जिन के खज़ाने तेरे कब्जे में है।
5. एक गुनाह के बारे में
जलील तरीन लोग
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जो लोग अल्लाह और उस के रसूल की मुखालफत करते है तो यही लोग (अल्लाह के नज़दीक) बड़े ज़लील लोगों में दाखिल हैं।”
6. दुनिया के बारे में
दुनियावी जिंदगी पर खुश न होना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“अल्लाह तआला जिस को चाहता है बेहिसाब रिज्क देता है और जिस को चाहता है तंगी करता है; और यह लोग दुनिया की जिंदगी पर खुश होते हैं (और उस के ऐश व इशरत पर इतराते हैं ) हालांके आखिरत के मुकाबले में दुनिया की जिंदगी एक थोड़ा सा सामान है।”
7. आख़िरत के बारे में
अहले जन्नत की सफें
सूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“अहले जन्नत की एक सौ बीस सफें होंगी, उन में अस्सी सफें इस उम्मत की और चालीस बाकी उम्मतों की होंगी।”
8. तिब्बे नबवी से इलाज
बीमारी से मुतअल्लिक अहम हिदायत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जब तुम्हें मालूम हो के फ़लाँ जगह ताऊन (प्लैग) फैला हुआ है, तो वहाँ मत जाओ और जिस जगह तुम रह रहे हो वहाँ ताऊन फैल जाए, तो उस जगह से (बिला ज़रूरत) मत निकलो।”
9. नबी (ﷺ) की नसीहत
एक दूसरे से हसद न करो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“एक दूसरे से हसद न करो, खरीद व फ़रोख्त में धोका देने के लिए बोली में इज़ाफ़ा न करो, (यानी बढ़ा चढ़ा कर न बोलो) एक दूसरे से दुशमनी न रखो, एक दूसरे से मुंह न फेरो और तुम में से कोई दूसरे के सौदे पर सौदा न करे।”
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