कुरआन में मधुमक्खी के पेटों का वर्णन क्यों ?

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कुरआन में मधुमक्खी के पेटों का वर्णन क्यों ?

आज से 1441 बरस पहले जब इतनी छोटी सी मधुमक्खी 🐝 की शरीर-रचना-विज्ञान (Anatomy) का विज्ञान मौजूद ही नहीं था उस वक़्त क़ुरआन में अल्लाह त'आला ने मधुमक्खी 🐝 के बारे में ऐसी जानकारी दी जिसको जान लेने के बाद हर अक़लमंद इंसान कहेगा की क़ुर'आन किसी इंसान की लिखी किताब नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया पैग़ाम है और सारी इंसानियत के लिए मार्गदर्शन ।

अरबी भाषा में मधुमक्खी 🐝 को "नहल" कहते हैं, क़ुर'आन मजीद में  मधुमक्खी 🐝 यानी "अन- नहल" (The Bees) के नाम से सूरह मौजूद है,

अल्लाह त'आला इस सुरह की आयत नंबर 68 से 69 मे फरमाता है कि..

"और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों में घर (छत्ते) बना और दरख्तों और लोगों की बनायी छतों में, फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अर्क़) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेटो से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख्तलिफ रंग होते हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक़ नहीं कि इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरत-ए-ख़ुदा की बहुत बड़ी निशानी है)." [कुरआन 68-69]

"पेटो (Stomachs) से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद)" अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मक्खी के पेट को पेटो Stomachs "بطونها" क्यूं  कहा❓

मधुमक्खी 🐝 के कितने पेट होते है❓

आज हमें Anatomy Science के ज़रिये पता चला कि मधुमक्खी 🐝 के तीन पेट होते हैं,  

मक्खी का चूसा हुआ फूलों का अर्क थोड़ी देर के लिए पहले पेट में दाखिल होता है फिर वाल्व खुलता है और नीचे दूसरे पेट तक जाता है जो इसको शहद में बदल देता है। 

दूसरे पेट के आख़िर में एक वॉल्व होता है जो शहद को मक्खी की ज़रूरत के अलावा और थोड़ी देर के लिए तीसरे पेट में जाने नहीं देता। 

तीसरा पेट मधुमक्खी 🐝 की आंतों पर मुश्तमिल होता है, उड़ते हुए अपना सफ़र मुकम्मल करने के लिए थोड़ा सा इसमें से खाती है और फिर जब मधुमक्खी 🐝 छत्ते पर लौटती है तो मोजज़ा ये की दूसरे पेट में जमा किया हुआ खालिस शहद अपने मुंह से निकालकर छत्ते के सुराखों में छोड़ देती है । 

पाक है वो ज़ात जिसने अपने मख़लूक को सबकुछ दिया फिर इसे हिदायत दी ।

"तो क्या लोग क़ुर'आन में (ज़रा भी) ग़ौर नहीं करते या (उनके) दिलों पर ताले लगे हुए हैं।"  [सुरह मुहम्मद-24]

- मोहसिन चिश्ती

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