इस्लामी कैलेंडर की शुरुवात कैसे हुई ?
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के खिलाफ़त के ज़माने में (लगभग 17 हिजरी) मुस्लिम सल्तनत बहुत बढ़ गई थी जिस की वजह से हिसाब किताब रखा जाने लगा जैसे ये इलाक़े से क्या आता है वोह इलाक़े से क्या आता है, ज़कात, टैक्स वगैरा इन सब चीज़ों का हिसाब किताब रखा जाने लगा।
इस्लामी कैलेंडर न होने की वजह से हिसाब किताब रखने में काफ़ी परेशानी हो रही थी तो हुआ ये की हिसाब किताब के लिए लोगों ने कहा "ऐ ! अमीरूल मोमिनीन ये जो हम टैक्सेस, ज़कात वगैरा लेते है इसके लिए कोई एक शुरुवाती महीना (स्टार्टिंग मंथ) हो और आखरी महीना (एंडिंग मंथ) हो ताकि इस्लामी साल का एक शुरूवात और एक खात्मा हो जिसकी वजह से हिसाब किताब रखने में आसानी हो। "
तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने गौर व फिक्र करने के बाद सहाबा से मशवरा किया और ये तय किया कि मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना और जुल् हिज्जा को आखरी महीना मानेंगे ताकि हिसाब किताब (अकाउंटिंग) के लिए आसानी हो।
मुहर्रम का महीना इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना कैसे बना?
मुहर्रम को इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना रखने के पीछे हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की हिकमत ये थी अल्लाह के रसूल ने मदीना के लिए जुल् हिज्जा के आखरी अय्याम में हिजरत शुरू की और जब आप मदीना पहुंचे उस दिन मुहर्रम की 1 तारीख़ थी तो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने सोचा क्यूं न हिजरत से यानी मुहर्रम की एक तारीख़ से इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात की जाए और इस तरह हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात हुई।
(अस सादिकुल अमीन पेज नं. 282)
नोट : जब से दुनियां बनी है तब से इस्लामी महीनो की गिनती बारह है। रसूल अल्लाह (सलल्लाहु अलैहिवसल्लम) के ज़माने में भी इसी तरह था लेकिन कोई शुरूवाती और आखरी महीना मुकर्रर नही था।
बाद में ज़रूरत के मुताबिक़ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में इस्लामी कैलेंडर की शुरूवात हुई।