10. शव्वाल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

हुजूर(ﷺ) से सहाबा (र.अ) की मुहब्बत, कुव्वते हाफिज़ा का बढ़ जाना, वुजू में चमड़े के मोजे पर मसह करना, परेशानी दूर करने की दुआ, खुश दिली से मुलाकात करना

10. शव्वाल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

10. Shawwal | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

हुजूर(ﷺ) से सहाबा (र.अ) की मुहब्बत

सन ५ हिजरी गजव-ए-बनी मुस्तलिक के मौके पर एक मुहाजिर और एक अन्सारी में किसी बात पर झगड़ा हो गया और दोनों तरफ़ जमातें बन गई और करीब था के आपस में मअरिका गरम हो जाए। मगर बाज लोगों ने बीच में पड़ कर सुलह करा दी।

ऐसे मौके पर अब्दुल्लाह बिन उबई जो मुनाफ़िकों का सरदार था, उसने हुजर (ﷺ) की शान में गुस्ताखाना अल्फाज़ कहे और यह भी कहा के खुदा की कसम हम लोग अगर मदीना पहुँच गए, तो हम इज्जत वाले मिल कर इन जलीलों को वहां से निकाल देंगे।

अब्दुल्लाह बिन उबई के बेटे जिन का नाम भी अब्दुल्लाह था और बड़े पक्के सच्चे मुसलमान थे, जब उन को यह बात मालूम हुई, तो मदीना मुनव्वरा से बाहर तलवार खींच कर खड़े हो गए और बाप से कहने लगे; के उस वक्त तक मदीना मे दाखिल नहीं होने दूंगा जबतक इसका इकरार ना करो के तुम जलील हो और मुहम्मद (ﷺ) इज्जतवाले हैं। उसको बड़ा तअज्जुब हुआ, के मेरा बेटा जो हमेशा मेरी इज्जत और फ़र्माबरदारी करता था, आज हुजर (ﷺ) के खिलाफ़ मेरी बात को बर्दाश्त न कर सका।

इतने में रसूलुल्लाह (ﷺ) का उधर से गुजर हुआ तो फ़रमाया: अब्दुल्लाह जाने दो! जब तक वह हमारे दर्मियान है, हम उनके साथ अच्छा ही सुलूक करेंगे।

2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

कुव्वते हाफिज़ा का बढ़ जाना

हज़रत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) फरमाते हैं
के मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) से कुरआन याद न होने की शिकायत की, तो आपने फर्माया : यह खंज़ब नामी शैतान का काम है और फिर फ़रमाया: करीब आओ,

मैं आप (ﷺ) के करीब आ गया, फिर आप (ﷺ) ने मेरे सीने पर हाथ मुबारक रखा, जिस से मुझे ठंडक भी महसस हुई

और फ़र्माया: शैतान! उस्मान के सीने से निकल जा।

हज़रत उस्मान (र.अ) फर्माते हैं: इस वाकिआ के बाद मैं जो भी चीज़ सुनता, वह मुझे याद हो जाती।

📕 दलाइलुन्नबुबह लिल अस्वहानी : ३८३

3. एक फर्ज के बारे में

वुजू में चमड़े के मोजे पर मसह करना

हजरत अली (र.अ) फ़र्माते हैं :

“मैं ने हुजूर (ﷺ) को मोजे के ऊपर के हिस्से पर मसह करते देखा।”

📕 अबू दाऊद : १६२

वजाहत: जब किसी ने बा वुजू चमड़े का मोजा पहना हो, फिर वुजू टूट जाए, तो वुजू करते वक्त उन मोजों के ऊपरी हिस्से पर मसह करना जरूरी है। मुसाफ़िर के लिये तीन दिन तीन रात और मुकीम के। लिये एक दिन एक रात जाइज़ है।

4. एक सुन्नत के बारे में

परेशानी दूर करने की दुआ

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

जब तुम्हे ग़म व परेशानी हो, तो यह दुआ पढ़ लिया करोः
“हस्बुनाल्लाहु नेमल वकील”

तर्जमा : अल्लाह तआला मेरे लिए काफ़ी है
और वही बेहतरीन काम बनाने वाले हैं।

📕 अबू दाऊद : ३६२७, अन औफ बिन मालिक

5. एक अहेम अमल की फजीलत

खुश दिली से मुलाकात करना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

जब दो मुसलमान मुलाकात करते हैं और
एक दूसरे को सलाम करते है तो अल्लाह तआला के
नज़दीक इन दोनो में से जियादा महेबूब वह शख्स है,
जो अपने साथी से जियादा खुश दिली से मुलाकात करे,
जब वह दोनों मुसाफ़ा करते हैं,

तो अल्लाह तआला उन पर सौ रहमतें नाज़िल फ़र्माता है,
उन में से नब्बे रहमतें मुसाफ़ा में पहल करने वाले पर
और दस रहमत मूसाफ़ा करने वाले
दूसरे आदमी पर नाजिल फर्माता है।”

📕 कन्जुल उम्माल:२५२४०. अन उमर र.अ

6. एक गुनाह के बारे में

शिर्क करने वाले की मिसाल

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“तुम सिर्फ अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जेह रहो उस के
साथ किसी को शरीक मत ठहराओ और जो शख्स
अल्लाह के साथ शिर्क करता है, तो उसकी मिसाल ऐसी
है जैसा के वह आस्मान से गिर पड़ा हो, फिर परिंदों ने
उस की बोटियाँ नोच ली हों या हवा ने किसी
दूर दराज मकाम पर लेजा कर उसे डाल दिया हो।”

📕 सूर-ए-हज : ३१

7. दुनिया के बारे में

दुनियावी ज़िंदगी धोका है

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“दुनियावी ज़िंदगी तो कुछ भी नहीं सिर्फ धोके का सौदा है।”

📕 सूर-ए-आले इमरान:१८५

वजाहत: जिस तरह माल के ज़ाहिर को देख कर खरीदार फंस जाता है, इसी तरह दुनिया की चमक दमक से धोका खा कर आखिरत से ग़ाफ़िल हो जाता है। इसी लिए इन्सानों को दुनिया की चमक-दमक से होशयार रहना चाहिए।

8. आख़िरत के बारे में

कयामत किस दिन कायम होगी

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“तुम्हारे दिनों में अफ़ज़ल दिन जुमा का दिन है,
इसी रोज़ हज़रत आदम (अलैहि सलाम) को पैदा
किया गया, इसी रोज़ उन का इन्तेकाल हुआ,
इसी रोज़ सूर फूंका जाएगा और
इसी दिन कयामत कायम होगी।”

📕 अबू दाऊद:१०४७

9. तिब्बे नबवी से इलाज

हर दर्द से निजात की दुआ

उस्मान बिन अबी अल आस (र.अ.) से रिवायत है के,
उन्होंने रसूलअल्लाह (ﷺ) से दर्द की शिकायत की जिसे वो
अपने जिस्म में इस्लाम लाने के वक्त महसूस कर रहे थे,
आप (ﷺ) ने फ़रमाया “तुम अपना हाथ दर्द की
जगह पर रखो और कहो, बिस्मिल्लाह तीन बार,
उसके बाद सात बार ये कहो.

“आऊजु बिल्लाहि वा क़ुदरतीही मीन शर्री मा अजिदु वा ऊहाझीरु”

(मैं अल्लाह की जात और कुदरत से हर उस चीज़ से पनाह
मांगता हु जिसे मैं महसूस करता हु और जिस से मैं खौफ करता हु)

📕 सहीह मुस्लिम २२०२, बुक ३९, हदीस ९१

10. नबी (ﷺ) की नसीहत

जूबान को बेलगाम होने से रोको

रसूलल्लाह (ﷺ) ने हजरत मुआज (र.अ) से फ़रमाया:

‘क्या मैं तुम्हें वह चीज़ बतला दूं जिस पर गोया इस्लाम का मदार है
और जिस के बगैर यह सब चीजे हेच और बेवज़न है?‘
मैंने अर्ज किया: हजरत! बतला दीजिए।
पस आप ने अपनी जबान पकड़ी और फ़रमाया:
इसको रोको, (ताके यह चलने में बेबाक और बे एहतियात न हो जाए।)

📕 तिमिजी:२६९६, अन मुआज बिन जबल (र.अ)

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