4. शव्वाल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

हज़रत आयशा (र.अ) का इल्मी मर्तबा, आंधी आने की खबर देना, हज किन लोगों पर फ़र्ज़ है, मुश्किल कामों की आसानी की दुआ, सूर-ए-इख्लास तिहाई कुरआन के बराबर है

4. शव्वाल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

4. Shawwal | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

हज़रत आयशा (र.अ) का इल्मी मर्तबा

हज़रत सय्यदा आयशा (र.अ) का इल्मी मकाम व मर्तबा बहुत बलंद था; चंद सहाबा को छोड कर तमाम मर्द व औरत पर उन्हें फौकियत हासिल थी, वह बयक वक्त क़ुरआने करीम की हाफिजा तफसीर व हदीस की माहिर और मुश्किल मसाइल को हल करने में बेमिसाल ज़हानत की मालिक थीं।

बड़े बड़े सहाबा उन से शरीयत के अहकाम व मसाइल मालूम करते थे, हजरत अबू मूसा अशअरी (र.अ) का बयान है के जब भी हम लोगों के सामने कोई मुश्किल मस्अला पेश आता तो उसका हल हजरत आयशा से मालूम करते और वह फौरन उसका हल बता दिया करती थीं,

इमाम जोहरी फर्माते हैं के अगर तमाम मर्दो और उम्महातुल मोमिनीन का इल्म जमा किया जाए, तो हज़रत आयशा का इल्म उन सब से ज़ियादा वसीअ होगा। कहा जाता है के दीन का चौथाई हिस्सा इन्हीं से मुतअल्लिक है। वह दीने इस्लाम और शरीअत के अहकाम को फैलाना और हुजूर (ﷺ) की तालीमात को आम करना अपनी जिन्दगी का मक्सद बना लिया था।

. तकरीबन २२१० अहादीस उन से मैरवी हैं, बिलाशुबा पूरी उम्मत पर उन के बेपनाह एहसानात हैं. इसी वजह से उन्हें “मोहसिन-ए-उम्मत” कहा जाता है। सन ६६ हिजरी में मदीना में इन्तेकाल फ़रमाया और रात के वक्त जन्नतुल बकी में दफ्न हुई। अल्लाह तआला उन्हें पुरी उम्मत की तरफ से बेहतरीन बदला अता फरमाए। (आमीन)

2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

आंधी आने की खबर देना

हज़रत अबू हुमैद (र.अ) फर्माते हैं : गज़व-ए-तबूक के मौके पर जब रसूलुल्लाह (ﷺ), सहाब-ए-किराम के साथ वादि उल कुरा में पहुंचे, तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया : रात को एक ज़ोर दार हवा चलेगी.“। लिहाज़ा उस वक्त कोई आदमी खड़ा न हो, नीज़ जिस के पास ऊंट हो, उस को भी रस्सी से बांध दें, चुनान्चे रसूलुल्लाह (ﷺ) के फर्मान के मुताबिक रात को बहुत ज़ोर से हवा चली और एक आदमी खड़ा हो गया, तो हवा ने उसको उठाकर “जबले तय्यिअ” में गिरा दिया।

📕 मुस्लिम:५९४८, अन अबी हुमैद

3. एक फर्ज के बारे में

हज किन लोगों पर फ़र्ज़ है

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है ;

“अल्लाह के वास्ते उन लोगों के जिम्मे बैतुल्लाह का हज करना (फर्ज) है, जो वहां तक पहुँचने की ताकत रखते हों।”

📕 सूर-ए-आले इमरान:९७

4. एक सुन्नत के बारे में

मुश्किल कामों की आसानी की दुआ

जब कोई मुश्किल काम आजाए तो यह दुआ पढ़ेः

तर्जमा: ऐ अल्लाह तेरे किए बगैर कोई काम आसान नहीं हो सकता और तू जब चाहे सख्त रंज व गम को भी आसानी में तबदील कर दे।

📕 इम्ने सुन्नी:३५१, अन अनस (र.अ)

5. एक अहेम अमल की फजीलत

सूर-ए-इख्लास तिहाई कुरआन के बराबर है

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“क्या तुम में से कोई यह नहीं कर सकता के एक रात में तिहाई कुरआन पढ़ ले ?” सहाब-ए-किराम ने अर्ज किया: भला कोई कैसे तिहाई कुरआन पढ़ लेगा? आपने फर्माया: – सूरह इखलास तिहाई कुरआन के बराबर है।”

📕 मुस्लिम: १८८६, अन अबी दरदा (र.अ)

6. एक गुनाह के बारे में

फ़ितना व फ़साद करने की सजा

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं, जमीन में फ़साद करने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों की बस यही सज़ा है के वह क़त्ल कर दिए जाएँ या सूली पर चढ़ा दिए जाएँ या उन के हाथ और पाँव मुखालिफ जानिब से काटे जाएँ या वह मुल्क से बाहर निकाल दिए जाएँ। यह सज़ा उन के लिए दुनिया में सख्त रुस्वाई का ज़रिया है और आखिरत में उन के लिए बहुत बड़ा अज़ाब है।”

📕 सूर-ए-माइदा:३३

7. दुनिया के बारे में

दुनिया से ज्यादा आखिरत अहेम

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“तुम तो दुनिया का माल व असबाब चाहते हो और अल्लाह तआला तुमसे आखिरत को चाहता हैं।”

📕 सूर-ए-अन्फाल:६५

वजाहत: इन्सान हर वक्त दुनियावी फायदे में मुन्हमिक रहता है और इसी को हासिल करने की फिक्र करता रहता है; हालांके अल्लाह तआला चाहता हैं के दुनिया के मुकाबले में आखिरत की फिक्र जियादा की जाए; क्योंकि आखिरत की फ़िक्र करना ज्यादा अहेम है।

8. आख़िरत के बारे में

सबसे पहले जिंदा होने वाले

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“हम दुनिया में सबसे आखिर में आए हैं, लेकिन कल हश्र (यानी आखिरत में जब सब को जमा किया जाएगा) तो हम सबसे पहले जिंदा किए जाएंगे।”

📕 बुखारी : ८७६, अन अबी हुरैरह (र.अ)

9. तिब्बे नबवी से इलाज

नींद न आने का इलाज

एक शख्स ने हुजूर (ﷺ) से नींद न आने की शिकायत की, तो आप ने फ़र्माया: यह पढ़ा करो-

तर्जमा: ऐ अल्लाह! सितारे छुप गए और आँखे पुरसुकून हो गई, तू हमेशा जिंदा और कायम रहने वाला है, ऐ हमेशा जिंदा और कायम रहने वाले ! मेरी रात को पुरसुकून बनादे और मेरी आँख को सुला दे।

📕 मुअजमुल कबीर लि तिबरानी : ४६८३

10. नबी (ﷺ) की नसीहत

अपना तहबंद आधी पिडलियों तक ऊंचा रखा करो

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:

“अपना तहबंद आधी पिडलियों तक ऊंचा रखा करो, अगर इतना ऊँचा ना रख सको तो कम अज कम टखनो से ऊपर रखा करो।”

📕 अबु दाऊद:०८,जाबीर बिन सुलैम (र.अ)

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