14. ज़िल क़दा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
14. Zil-Qada | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
इत्तिबाए सुन्नत का एक नमूना
हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह.) के ज़मान-ए-खिलाफ़त में जब मुसलमानों ने समरकंद फ़तह कर लिया और मुसलमान वहाँ बस गए और अपने घर बना लिए और एक अर्सा गुज़र गया, तो समरकंद वालों को मालूम हुआ, के मुसलमानों ने अपने नबी (ﷺ) की सुन्नत के खिलाफ़ हमारे मुल्क को फ़तह कर लिया है, यानी यह के सबसे पहले इस्लाम की दावत दें फिर जिज्या की पेशकश करें और अगर वह भी मंजर न हो तो फिर मुकाबला करें, लिहाजा उन्होंने हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज (रह.) की खिदमत में चंद लोगों को रवाना किया और उन्हें यह बताया के आपकी फौज ने अपने नबी की इस सुन्नत पर अमल किए बगैर समरकंद को फ़तह कर लिया है।
हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह.) ने समरकंद के काज़ी को हुक्म दिया के अदालत कायम करो, फिर अगर यह बात सही साबित हो जाए, तो मुसलमान फौजों को हुक्म दें के समरकंद छोड़ कर बाहर खड़ी हो जाएं, फिर इस सुन्नत पर अमल करें। चुनान्चे काजी ने ऐसा ही किया, वह बात सही साबित हुई, तो मुसलमानों ने समरकंद खाली कर दिया और शहर से बाहर जा कर खड़े हो गए। जब वहाँ के बुतपरस्तों ने मुसलमानों का यह अदल व इन्साफ़ देखा, जिस की मिसाल दुनिया की तारीख में नहीं मिलती, तो उन्होंने कहा अब लड़ाई की जरूरत नहीं, हम सब ईमान लाते हैं। चुनांचे सारा का सारा समरकंद मुसलमान हो गया।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
दरख्त का आप (ﷺ) की खिदमत में आना
हज़रत बुरैदा (र.अ) फ़र्माते हैं के एक देहाती रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आकर कहने लगा: मैं इस्लाम कबूल कर चुका हुँ। अब मुझे कोई चीज़ दिखाइए जिस से मेरा ईमान बढे,
तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: उस दरख्त के पास जा कर कहो रसूलुल्लाह (ﷺ) बुला रहे हैं, उस ने जा कर कहा, तो वह दरख्त दाए बाएं जानिब झुका और फिर जड़ों से अलग हो कर रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आया और सलाम किया, उस देहाती ने कहा : बस या रसूलल्लाह! फिर वह दरख्त आप (ﷺ) के कहने पर वापस अपनी जगह चला गया और जड़ों से मिल गया।
3. एक फर्ज के बारे में
तक्बीरे तहरीमा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“नमाज की कुंजी वुजू है, उसका तहरीमा तक्बीर है और नमाज़ का खत्म करनेवाला तस्लीम है।”
वजाहत: नमाज शुरू करते वक्त जो तक्बीर (अल्लाहु अकबर) कही जाती है, उसको “तकबीरे तहरीमा” कहते है, नमाज के शुरू में तक्बीरे तहरीमा कहना फर्ज है।
4. एक सुन्नत के बारे में
अरफ़ात में अफ़ज़ल तरीन दुआ
तमाम अंबिया मैदाने अरफ़ात में यह दुआ कसरत से पढ़ते थे:
« لاإله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد وهو علی کل شیء قدیر »
“ला इलाह इल्लल्लाहु वह्-दहु ला शरीक लहू लहुल मुल्क व लहुल हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर”
5. एक अहेम अमल की फजीलत
सलाम में पहेल करने वाला
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“लोगों में अल्लाह तआला के सबसे ज़ियादा करीब वह शख्स है, जो सलाम करने में पहेल करे।”
6. एक गुनाह के बारे में
गुमराही इख्तियार करना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जो लोग अल्लाह तआला के रास्ते से भटकते हैं, उन के लिए सख्त अज़ाब है, इस लिए के वह हिसाब के दिन को भूले हुए हैं।”
7. दुनिया के बारे में
नाफ़र्मानों से नेअमतें छीन ली जाती हैं
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“वह नाफर्मान लोग कितने ही बाग, चश्मे, खेतियाँ और उम्दा मकानात और आराम के सामान जिन में वह मजे किया करते थे, (सब) छोड़ गए। हम ने इसी तरह किया और उन सब चीजों का वारिस एक दूसरी कौम को बना दिया। फिर उन लोगों पर न तो आस्मान रोया और नही जमीन और न ही उनको मोहलत दी गई।”
8. आख़िरत के बारे में
ईमान की बरकत से जहन्नम से छुटकारा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जब जन्नती जन्नत में चले जाएंगे और जहन्नमी जहन्नम में चले जाएंगे, तो अल्लाह तआला फरमाएगा: जिस के दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान हो उसे भी जहन्नम से निकाल लो, चुनान्चे उन लोगों को भी निकाल लिया जाएगा, जिनकी यह हालत होगी के वह जल कर काले सियाह हो गए होंगे। उसके बाद उन को “नहरे हयात” में डाला जाएगा, तो इस तरह निकल आएंगे जैसे दाना सैलाब के कड़े में (खाद और पानी मिलने की वजह से) उग आता है।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
बीमारों को ज़बरदस्ती न खिलाना
रसुलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“अपने बीमारों को जबरदस्ती खिलाने पिलाने की कोशिश ना करो क्यों कि अल्लाह तआला उन्हें खिलाता पिलाता है।”
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
गुस्सा न किया करो
एक शख्स ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से कुछ नसीहत करने की दरख्वास्त की। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“गुस्सा न किया करो। उसने अपनी वही दरख्वास्त कई बार दोहराई. आपने हर बार यही फर्माया :गुस्सा न किया करो।”
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