7. ज़िल क़दा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

हजरत अली बिन हुसैन (रह.), फलों में रंग, मज़ा और खुश्बू, हज के महीने में एहराम बांधना, जम जम खड़े हो कर पीना, अल्लाह के रास्ते में सवारी देना, रिश्वत क

7. ज़िल क़दा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

7. Zil-Qada | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

हजरत अली बिन हुसैन (रह.)

हज़रत अली बिन हुसैन (रह.) जिन की कुन्नियत अबुल हसन और लकब जैनुल आबिदीन है, हज़रत हुसैन (र.अ) के सब से छोटे बेटे थे, हज़रत जैनुल आबिदीन (र.अ) जो न सिर्फ एक ताबिई थे बल्के खानदाने नुबुब्वत के चश्म व चिराग भी थे, मैदाने करबला में अहले बैत की शहादत के बाद मर्दों में सिर्फ इन की ज़ात ही बाकी रह गई थी जिन से हज़रत हुसैन (र.अ) की नस्ल चली।

वाकेअए करबला के वक्त सफ़र में अपने वालिद के साथ थे, मगर बीमारी की वजह से जंग में शरीक न हो सके थे। इन की एक खास सिफ़त दर्या दिली से अल्लाह के रास्ते में खर्च करना था। मदीना के तकरीबन सौ घराने इन के सदक़ात से परवरिश पाते थे और किसी को खबर तक न होने पाई थी। वह खुद रातों को जा कर लोगों के घरों पर सदका पहुँचाते थे, इन की वफ़ात के बाद मालूम हुआ के इन घरानों की कफालत इन्हीं के ज़रिए हुआ करती थी।

सन ९४ हिजरी में मदीना में वफ़ात हुई और जन्नतुल बकी में हज़रत हसन (र.अ) के बाजू में दफ़्न किये गए।

📕 इस्लामी तारीख

2. अल्लाह की कुदरत

फलों में रंग, मज़ा और खुश्बू

ज़मीन पर बेशुमार किस्म के फल पाए जाते हैं, जिस में से हर एक की अपनी एक खुश्बू अपना एक रंग और मज़ा है, लेकिन गौर करें के यह रंग,यह खुश्बू , यह मज़ा कहां से आया ? अगर पेड़ की जड़ को खोद कर देखें तो वहां मिट्टी ही मिट्टी है, डालियों को काट कर देखें तो वहां न तो रंग है, न खुश्बू है और न यह मज़ा है, पेड़ को जो पानी दिया गया उस में भी यह चीजें नहीं, तो आखिर यह चीजें कहां से आई?

यकीनन यह अल्लाह के खज़ाने से आती हैं।

📕 सूर-ए-मुनाफिकून: ६३:७

3. एक फर्ज के बारे में

हज के महीने में एहराम बांधना

हजरत अब्दुल्लाह इने अब्बास (र.अ) फरमाते हैं :

सुन्नत यह है के हज का एहराम हज के महीनों में ही बांधा जाए।

📕 बुखारी: ३३

वजाहत: शव्वाल, जिलकादा और जिलहिज्जा के पहले दस दिनों को (अश्हुरे हज) यानी हज के महीने कहा जाता है। इन्हीं महीनों के अंदर अंदर हज़ का एहराम बांधना जरूरी है।

4. एक सुन्नत के बारे में

जम जम खड़े हो कर पीना

हज़रत इब्ने अब्बास (र.अ) बयान करते हैं के

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने जम ज़म का पानी खड़े हो कर पिया।

📕 बुखारी: ५६१७

5. एक अहेम अमल की फजीलत

अल्लाह के रास्ते में सवारी देना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“जो शख्स अल्लाह और उस के वादे पर यक़ीन के साथ उस के रास्ते में अपनी सवारी देगा तो उस सवारी का खाना, पीना, लीद और पेशाब का वजन भी कयामत के दिन नेकियों में शुमार होगा।”

📕 मुस्तरदक : २४५६, अन अबी हुरैरह (र.अ)

वजाहत: इस हदीस के अंदर हर तरह की गाड़ियां भी दाखिल हैं

6. एक गुनाह के बारे में

रिश्वत की लेन देन करना

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र (र.अ) फर्माते हैं :

“रसूलल्लाह (ﷺ) ने रीश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले पर लानत फर्माई है।”

📕 तिर्मिजी : १३३७, अन अब्दुल्लाह बिन अमर (र.अ)

7. दुनिया के बारे में

दुनिया मोमिन के लिए कैद खाना है

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“दुनिया मोमिन के लिए कैद खाना है और काफिर के लिए जन्नत है।”

📕 मुस्लिम : ७४१७, अन अबी हुरैरा (र.अ)

वजाहत: शरीअत के अहकाम पर अमल करना,नफ्सानी ख्वाहिशों को छोड़ना, अल्लाह और उस के रसूलों के हुक्मों पर चलना नफ्स के लिए कैद है और काफ़िर अपने नफ़्स की हर ख्वाहिश को पूरी करने में आज़ाद है, इस लिए गोया दुनिया ही उस के लिए जन्नत का दर्जा रखती है।

8. आख़िरत के बारे में

गुनाहगारों के लिए जहन्नम की आग है

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“(अल्लाह का अज़ाब उस दिन होगा) जिस दिन आस्मान थरथर कांपने लगेगा और पहाड़ अपनी जगह से चल पड़ेंगे। उस दिन झुटलाने वालों के लिये बड़ी खराबी होगी, जो बेहदा मशगले में लगे रहते हैं उस दिन उन को जहन्नम की आग की तरफ़ धक्के मार कर ढकेला जाएगा (और कहा जाएगा) यही वह आग है जिस को तुम झुटलाया करते थे।”

📕 सूरह तूर: ९ ता १४

9. तिब्बे नबवी से इलाज

खुजली का इलाज

हज़रत अनस इब्ने मालिक (र.अ) फर्माते हैं के,

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (र.अ) और जुबैर बिन अव्वाम (र.अ) को खुजली की वजह से रेशमी कपड़े पहनने की इजाज़त मरहमत फ़रमाई थी

📕 बुखारी : ५८३९

वजाहत: आम हालात में मर्दो के लिए रेशमी लिबास पहनना हराम है, मगर ज़रूरत की वजह से माहिर हकीम या डॉक्टर्स कहे तो गुंजाइश है।

10. कुरआन की नसीहत

ज़मीन पर अकड़ कर मत चलो

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“ज़मीन पर अकड़ कर मत चलो (क्योंकि तुम न तो जमीन को फाड़ सकते हो और न तन कर चलने से पहाड़ों की बलंदी तक पहुंच सकते हो।”

📕 सूरह बनी इसराईल : ३७

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